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होली की अनूठी परंपरा:टका लेने की परंपरा आज भी निभाई गई,पारंपरिक गीतों के साथ निकली गेवर

होली की अनूठी परंपरा:टका लेने की परंपरा आज भी निभाई गई,पारंपरिक गीतों के साथ निकली गेवर

बीकानेर। होली के उल्लास में सैकड़ों वर्षों पुरानी परंपरा के तहत गुरुवार को एक विशेष जाति की महिला से रुपये लेने की रस्म निभाई गई। इस मौके पर पारंपरिक अंदाज में गेर निकाली गई, जिसमें लोकगीतों और चंग की थाप के साथ रंगों की मस्ती देखने को मिली।दोपहर दो बजे लालाणी व्यासों के चौक से “बधावो ओ दिन नीको ईये, गेवर गेवरियों रै काढ़ो लस-लस टीको, चोखा चोखा चावल्ल लस लस टीको” जैसे पारंपरिक गीतों के साथ गेर रवाना हुई। उसके बाद अपने पारंपरिक गीत गाते लोग ललाट पर लंबा तिलक, सिर पर साफा, रंग-बिरंगी पगड़ी, हाथों में छड़ी और चंग की थाप पर झूमते हुए लोग इस सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत कर रहे थे।

यात्रा के दौरान कीकाणी व्यासों के चौक में खड़े लोग भी इसमें शामिल हो गए। इसके बाद गेर व्यासों का चौक, ओझाओं का चौक, बिन्नाणी चौक और सर्राफा बाजार होते हुए पुनः लालाणी व्यासों के चौक पहुंची और संपन्न हुई।इस गेर में झूठा पोता परिवार के लोग भी शामिल हुए। लालाणी व्यास जाति की ओर से जयनारायण व्यास, बल्लभ सरदार, मक्खनलाल व्यास, कानूलाल व्यास, भंवरलाल व्यास, केदार व्यास, मदन गोपाल व्यास, शिव प्रकाश व्यास आदि ने भाग लिया। वहीं, कीकाणी व्यासों से नारायणदास व्यास, बृजेश्वर लाल व्यास, गोपाल व्यास, बल्लभ, भरत, शिवकुमार, श्याम, अरविंद, अरुण, गोवर्धन, बिट्टू आदि ने अपनी भागीदारी निभाई।

तेलीवाड़ा चौक पहुंचने पर गेवर का जलपान करवा कर गेर का स्वागत किया गया। गेवर में शामिल राधा कृष्ण हर्ष ने बताया कि सैकड़ों साल से चली आ रही इस परंपरा के तहत कल होने वाले हर्ष -व्यास जाति के बीच होने वाले डोलची के पानी के खेल के लिए व्यास जाति के लोग पहले चांदी के टके (सिक्का) लेने जाते थे। कालांतर में सराफा बाजार के स्वर्ण व्यवसाई अब उन्हें चंदा देते हैं। इस परंपरागत गेवर के बाद बीकानेर की होली अपने परवान पर पहुंचेगी।

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