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राज से नहीं डरे है, ये खोटे काम करे है………..रात 12 बजे मां आशापुरा के अवतरण के बाद शहजादी नौटंकी रम्मत का हुआ मंचन

राज से नहीं डरे है, ये खोटे काम करे है………..रात 12 बजे मां आशापुरा के अवतरण के बाद शहजादी नौटंकी रम्मत का हुआ मंचन

बीकानेर। होली के अवसर पर आयोजित होने वाली लोकनाट्य परंपरा में नौटंकी शहजादी रम्मत का विशेष स्थान है। यह रम्मत शहर के बिस्सा चौक और बारह गुवाड़ चौक में मंचित होती है, जो पूरी रात चलती है और अगले दिन सुबह तक अपने रंग में सराबोर रहती है। दर्शकों की भारी भीड़ इस रम्मत का आनंद लेने और कलाकारों की हौसला-अफजाई के लिए मौजूद रहती है।

 

रम्मत का पारंपरिक आगाज

 

बिस्सा चौक में उस्ताद रमणसा बिस्सा के अखाड़े में मां आशापुरा स्वरूप के अखाड़े में पदार्पण और स्तुति-वंदना के साथ रम्मत की शुरुआत होती है। वहीं, बारह गुवाड़ चौक में भगवान गणेश स्वरूप के अखाड़े में स्तुति-वंदना के साथ इस रम्मत का आगाज किया जाता है।

 

गीत-संगीत से सजी रम्मत

 

रम्मत में दो बोला, चौबाला और लावणी जैसे पारंपरिक लोकनृत्य और गीतों का समावेश होता है। विशेष बात यह है कि महिला किरदारों को पुरुष कलाकार ही निभाते हैं, जो इस रम्मत की खास पहचान है।

 

यह है कथानक

 

इस रम्मत की कहानी एक रोचक नाटकीय ताने-बाने से बुनी गई है—

 

भाभी के ताने सुनकर देवर नाराज होकर नौटंकी शहजादी से विवाह करने की जिद ठान लेता है।वह महल पहुंचकर मालिन से मिलता है और महिला वेश में नौटंकी शहजादी के महल में प्रवेश करता है।

शहजादी उसके प्रति आकर्षित होती है, लेकिन जब सच्चाई सामने आती है, तो सिपाही उसे पकड़ लेते हैं और मौत की सजा सुनाई जाती है।शहजादी उसे बचाती है और दोनों विवाह कर घर लौट आते हैं।

 

 

रम्मत के अमर संवाद और गीत

 

इस रम्मत के कुछ प्रसिद्ध संवाद और गीत दर्शकों की जुबान पर रहते हैं—

 

“कहन की भरी कटारी रे, मेरे सीने में मारी रे…”

 

“जब मुंह तुझे दिखाऊ, लाऊ नौटंकी नारी…”

 

“है भारी बदमाश, सुबह सूली पर इसे धरेंगे…”

राज से नहीं डरे है, ये खोटे काम करे है

“मरद बन जा रे…”

 

 

*अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बढ़ रही लोकप्रियता*

 

लोकनाट्य पर यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन से पीएचडी कर रही डॉली शर्मा ने इस रम्मत को देखकर कहा—

“अब तक मैंने इसके बारे में सिर्फ सुना था, लेकिन इसे देखने का अनुभव अविस्मरणीय रहा। बीकानेर के कलाकारों ने इस परंपरा को जीवंत बनाए रखा है सरकार को इस कला को बचाने के लिए आर्थिक मदद भी देनी चाहिए।”

इस रम्मत में चौथी पीढ़ी के कलाकार उस्ताद कृष्ण कुमार ने बताया कि उनकी सातवीं पीढ़ी इस रम्मत में हिस्सा ले रही हैं। नौटंकी शहजादी रम्मत बीकानेर की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न अंग है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है।यह न केवल मनोरंजन का माध्यम है, बल्कि इसमें लोकजीवन, हास्य और सामाजिक संदेश भी समाहित हैं।

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