बीकानेर। चित्रकला की प्राचीन मथेरण,उस्ता आर्ट की दिवानगी एक विदेशी कलाकार को सात समंदर पार बीकानेर ले आई। अटलांटा, जॉर्जिया, संयुक्त राज्य अमेरिका के ऐमोरी विश्वविद्यालय, से पी. एच. डी. के छात्र एरिक विलालोबॉस जैन यति परम्परा व उनके सम्बन्ध में मथेरण कला पर शोध का कार्य कर रहे है। मैक्सिकन परिवार में जन्मे विलालोबिस की भारतीय संस्कृति में खासी रुचि है। अपनी पीएचडी प्रोग्राम में भारतीय धर्मशास्त्र में पढ़ाई कर रहे विलालोबिस को भारतीय चित्रकला की उस्ता आर्ट,मथेरण शैली इस कदर पसंद आई कि वे इस कला को सीखने के लिए सात समंदर पार बीकानेर आ गए । बकौल विलालोबिस कला के छात्र के नाते मुझे बीकानेर की उस्ता आर्ट ने मुझे बहुत प्रभावित किया। उन्होंने बताया कि भारतीय कला के प्रति मेरा लगाव ही है जो मुझे इतनी दूर खींचकर ले आया। विलालोबिस को बीकानेर की उस्ता आर्ट, मथेरण शैली की बारिकियों सिखा रहे राम कुमार बादामी ने बताया कि ये भारतीय चित्रकला शैली की चुंबकीय शक्ति ही है जो इतनी दूर से परदेशियों को बीकानेर तक खींच लाई है।भादाणी ने बताया कि इन दोनों शैलियों के मिश्रण से जो नायपन सामने आ रहा है उससे काफ़ी विदेशी छात्रों को यह शैली पसंद आ रही है। भादाणी ने बताया कि वे बीकानेर के प्राचीन हिन्दू, जैन मंदिरो पर सुनहरी कलम का काम कर चुके हैं। ऐसे में उस्ता आर्ट के प्रति विदेशी छात्रों का रुझान इस लुप्त प्रायः हो चुकी इस कला के लिए संजीवनी साबित होगा।