बीकानेर।मथुरा की लठमार होली तो आपने देखी होगी, लेकिन बीकानेर में पानी से डोलची मार होली खेली जाती है।जो अपने आप में अनूठी है।होली के रसिये इस डोलची मार होली का जम कर आनंद ले रहे हैं, इसमें रंग की बजाय केवल पानी से होली खेली जाती है। कहते है प्यार का दर्द है, मीठा मीठा प्यारा प्यारा, जी हां ऐसा ही दर्द बीकानेर के लोगों को मीठा भी लगता है और प्यारा भी। जहां होली पर डोलची से होली खेलने की परंपरा है।जिसमें एक दूसरे पर पानी का वार करके होली खेली जाती है।जहां जितना तेज प्रहार होगा और दर्द होगा उतना ही प्यार बढेगा। यह परंपरा लगभग 500 साल पुरानी है, वर्षों से चली आ रही इस परंपरा को आज भी बीकानेर में वैसे ही मनाया जाता है। होली के इस मोके पर बड़े बड़े कडाव (बर्तन) को पानी से भरा जाता है। इस खेल में काफी पानी लगता है, उसके लिए पहले से तैयारियां की जाती है और अगर पानी कम पड़ जाये तो पानी के टैंकर मंगवाए जाते हैं और हजारों की संख्या में लोग इस खेल में एक दुसरे की पीठ पर डोलची से पानी मारते हैं और होली खेलते है।खेल में दो लोग आपस में खेलते हैं, चमड़े से बनी इस डोलची में खेलने वाला पानी भरता है और सामने खड़े अपने साथी की पीठ पर जोर से पानी से वार करता है।फिर उसे भी जवाब देने का मोका मिलता है जितनी तेज़ आवाज़ होती है उतना ही खेल का मज़ा आता है और जोश बढ़ता है। महिलाएं और बच्चे अपने घरों की छत से इस खेल के नज़ारे को देखती हैं।आखिर में खेल का अंत लाल गुलाल उड़ाकर और पारंपरिक गीत गाकर किया जाता है।इस खेल में बच्चे, बूढ़े, जवान हर जाति धर्म के लोग हिस्सा लेते हैं। होली के रसिये साल भर इस डोलची मार होली का इंतजार करते हैं और जम क् पानी का खेल खेला जाता है।