देश जहां एक ओर आजादी की 75 वीं वर्षगांठ अमृत महोत्सव के रूप में बना रहा है वही राजस्थान में लोकतंत्र का बुरा हाल है। राजस्थान के राजनीतिक गलियारों में मंत्री और विधायकों पर हावी अफसरशाही की चर्चाएं आम है। आए दिन गहलोत सरकार के मंत्रियों और विधायकों की पीड़ा सीएम को लिखे पत्र सोशल मीडिया या बयानों में साफ नजर आती है।
कुछ ऐसा ही हाल पिछले 3 महीने से नगर निगम बीकानेर का है। होना भी लाजमी है जहां सत्तापक्ष के विधायकों और मंत्रियों की सुनवाई नहीं हो रही तो निगम में तो फिर भी विपक्ष की महापौर सुशीला कंवर राजपुरोहित है। मेयर राजपुरोहित भी पूरे कायदे कानून और साहस से लोकतंत्र की रक्षा के लिए अभी हावी हो रही अफसरशाही का डट कर सामना कर रही है।
ताजा प्रकरण नगर निगम द्वारा कचरा परिवहन हेतु ट्रैक्टर ट्रॉली की पुनः जारी निविदा से जुड़ा है। दरअसल नगर निगम हर वर्ष ट्रैक्टर ट्रॉली आपूर्ति की निविदा जारी करता है । इस वर्ष जारी निविदा आयुक्त गोपालराम बिरडा के आते ही विवादों का घर बनी हुई है।1 करोड़ से ऊपर के सभी टेंडर में महापौर की स्वीकृति ली जानी अनिवार्य है। आयुक्त ने पहले नियम विरुद्ध बिना उपापन समिति की अनुशंसा और सक्षम स्तर बोर्ड/महापौर की स्वीकृति के टेंडर को निरस्त कर दिया और जब मामला महापौर के संज्ञान में पहुंचा तो आयुक्त ने आनन-फानन में टेंडर बहाल कर दिया। जबकि आरटीपीपी नियम धारा 78 के अनुसार जो टेंडर एक बार निरस्त कर दिया गया है वह पुनः बहाल नहीं की जा सकता। खैर यह अनियमितता यहां ही नहीं रुकी बल्कि आयुक्त द्वारा एक गलती छुपाने के लिए गलतियों पर गलतियां की गई। टेंडर में शामिल तीनों फर्मों को नियम विरुद्ध कार्य करने के लिए लिखा गया। न्यूनतम दर दाता के बिना लिखित असमर्थता के क्रमशः L2 L3 को लिखा गया और बाकी दोनों के मना करने पर तीनों फर्मों की अमानत राशि जप्त कर ब्लैक लिस्ट कर दिया गया।
हालांकि नियमों के विपरीत आयुक्त के इस कृत्य के विरुद्ध किसी संवेदक ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है तो किसी ने डीएलबी का। इसके बाद भी आयुक्त द्वारा एक बार फिर बिना उपापन समिति की अनुशंसा और बिना सक्षम स्तर बोर्ड/महापौर की स्वीकृति के पुनः टेंडर निरस्त कर नया टेंडर जारी करने की कार्यवाही शुरू कर दी गई।
आयुक्त गोपाल राम की हठधर्मिता और आयुक्त पद का रसूख दिमाग पर इस कदर सवार हुआ कि इन्होंने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर 4.80 करोड़ का टेंडर जारी कर दिया जोकि बोर्ड या महापौर की स्वीकृति से ही जारी हो सकता था, नियमों को दरकिनार कर खुद के स्तर पर जारी कर दिया। गौरतलब है कि पत्रावली पर उपापन समिति सदस्यों द्वारा महापौर की अनुशंसा की बात लिखी थी लेकिन आयुक्त द्वारा नियमों के खिलाफ लाइन काटकर हस्ताक्षर कर दिए गए। एक ही पत्रावली पर इतनी बार नियमों की अवहेलना और आयुक्त की “अहम ब्रह्मास्मि” की कार्यशैली नगर निगम की चर्चाओं में शुमार है।
*कार्यवाहक स्वास्थ्य अधिकारी अशोक व्यास मूल रूप से जिम्मेदार*
इस टेंडर में हुई अनियमितता के लिए मुख्य जिम्मेवार कार्यवाहक स्वास्थ्य अधिकारी अशोक व्यास है। यह टेंडर स्वास्थ्य शाखा से संपादित की जा रहा है ऐसे में पत्रावली में हुई अनियमितताओं के लिए समस्त जिम्मेदारी कार्यवाहक स्वास्थ्य अधिकारी अशोक व्यास की है। पत्रावली में इतनी अनियमितताओं के बावजूद कार्यवाहक स्वास्थ्य अधिकारी अशोक व्यास पत्रावली पर हस्ताक्षर कर अग्रेषित करते रहे। नियमों के खिलाफ जाना अशोक व्यास के लिए नया नहीं है। पूर्व में भी नियमों के खिलाफ फर्म को अनुचित लाभ देने एवं भ्रष्टाचार के मामले में स्वास्थ्य अधिकारी का पद अशोक व्यास से छीन लिया गया था। जिसकी जांच रिपोर्ट में उपायुक्त द्वारा अशोक व्यास पर लगे आरोपों को प्रमाणित भी किया जा चुका है। हालांकि इस प्रकरण में भी अशोक व्यास पर कोई कार्यवाही नहीं हुई बल्कि एक बार फिर से स्वास्थ्य अधिकारी का कार्यभार दे दिया गया। भ्रष्टाचार में लिप्त होने के बावजूद बार-बार स्वास्थ्य अधिकारी का कार्यभार मिलने का मुख्य कारण अशोक व्यास का बीकानेर पश्चिम विधायक डॉक्टर बी डी कल्ला के करीबियों में होना है।
*वित्तीय सलाहकार की जगह कनिष्ठ लेखाकार ने किये हस्ताक्षर*
नगर निगम द्वारा जारी होने वाली निविदाओं के लिए आयुक्त द्वारा गठित स्थाई उपापन समिति में वित्तीय सलाहकार सदस्य हैं। वर्तमान में वित्तीय सलाहकार ना होने के कारण उनका लिंक अधिकारी मुख्य लेखाधिकारी सुमेर सिंह है। परंतु टेंडर में वित्तीय सलाहकार की जगह कनिष्ठ लेखाकार प्रमोद जाट ने हस्ताक्षर कर दिए। प्रमोद जाट का भी विवादों से पुराना नाता है । प्रमोद जाट पर पुलिस थाना नोखा में मारपीट के एक मामले में एफ आई आर दर्ज है।
*क्या कहता है नियम*
1. आरटीपीपी एक्ट 2013 धारा 78 के अनुसार कोई उपापन/निविदा एक बार निरस्त होने के बाद पुनः बहाल नहीं की जा सकती संस्था उस उपक्रम या कार्य कि नियमानुसार पुनः निविदा जारी कर सकती है।
2. राजस्थान नगरपालिका अधिनियम 2009 के लेखा नियमानुसार नगर निगम में प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वीकृति की शक्तियां
रुपए 25 लाख तक -उपायुक्त
रुपए एक करोड़ तक -आयुक्त
रुपए दो करोड़ तक -मेयर
रुपए 5 करोड़ तक -वित्तीय समिति
और इससे अधिक -बोर्ड
वर्तमान में कमेटियों का विवाद न्यायालय में लंबित होने के कारण समितियों की समस्त शक्तियां मेयर के पास है । ऐसे में पुरानी निविदा निरस्त करने से पूर्व भी तथा नई निविदा जारी करने से पूर्व भी मेयर से स्वीकृति ली जानी अनिवार्य थी।
3. पूर्व में किए गए टेंडर को जारी करने से पूर्व महापौर से स्वीकृति ली गई थी। फिलहाल आयुक्त द्वारा पूर्व की स्वीकृति को मानकर नई निविदा जारी कर दी गई हैं जो कि गलत है क्योंकि पूर्व में महापौर द्वारा दी गई स्वीकृति वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए थी वर्तमान में वित्तीय वर्ष बदल चुका है । अतः टेंडर जारी करने से पूर्व प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वीकृति महापौर से ली जानी अनिवार्य थी।
*राजनैतिक संरक्षण व्यवस्था बिगड़ने का मुख्य कारण*
आयुक्त गोपाल राम खुले तौर पर कई मर्तबा यह कहते नजर आए हैं की उन्हें कल्ला जी और उनके भतीजे ने लगवाया है और वे सिर्फ उन्हीं की सुनेंगे। ऐसे में नगर निगम की इस बिगड़ती व्यवस्था का कारण मंत्री कल्ला का राजनैतिक संरक्षण है। अगर महापौर की माने तो मंत्री जी का अत्यधिक हस्तक्षेप का कारण नगर निगम में कांग्रेस को मिली हार है। नगर निगम चुनाव के समय कल्ला जी प्रतिष्ठा दाव पर थी ऐसे में कांग्रेस की हार, भाजपा का बोर्ड और मेयर सुशीला कंवर को मंत्री कल्ला आज तक पचा नहीं पाए है।
*मेयर पहुंची निदेशालय जयपुर*
इस पूरे प्रकरण पर मेयर पहले ही डीएलबी शिकायत कर चुकी है। डीएलबी निदेशक ने प्रकरण की जांच उप निदेशक क्षेत्रीय को भी सौंपी ।परंतु जांच अपनी धीमी गति में है। ऐसे में मेयर सुशीला कंवर खुद जयपुर कूच कर चुकी है। आज संभवत है शासन सचिव तथा निदेशक से मिलकर प्रकरण पर चर्चा करेंगी। हालांकि दो दिन पहले मेयर जिला कलेक्टर से भी मिली और आयुक्त पर कार्यवाही ना होने पर खासा नाराज भी नजर आई थी। 2 महीने बीत जाने और 10 से अधिक प्रकरणों में आयुक्त के विरुद्ध साक्ष्य देने के बावजूद कोई कार्यवाही नहीं हुई। जिसमें प्रशासन शहरों के संग अभियान में की गई भारी आंकड़ों की गड़बड़ी का मुद्दा अहम था।
लगातार कानून और नियमों के साथ आयुक्त गोपाल राम बिरड़ा के नियम एवं विधि विरुद्ध रवैए से लड़ रही महापौर सुशीला कंवर जल्द हार मानने वालों में से नहीं है। जानकारों का मानना है कि राज्य सरकार और स्वायत्त शासन विभाग को महापौर द्वारा आयुक्त की नियम विरुद्ध कार्यशैली और वित्तीय अनियमितताओं से जुड़े साक्ष्यों पर संज्ञान लेकर शीघ्र कार्यवाही कर देनी चाहिए ताकि सरकार की साख बच सके।