बीकानेर। राजस्थान की सियासत इन दिनों एक थप्पड़ कांड को लेकर गरमाई हुई है। टोंक जिले की देवली-उनियारा विधानसभा सीट पर उपचुनाव के दौरान उपजे विवाद ने राजनीतिक पारा चढ़ा दिया है। राजस्थान की सियासत इन दिनों एक थप्पड़ कांड को लेकर गरमाई हुई है। टोंक जिले की देवली-उनियारा विधानसभा सीट पर उपचुनाव के दौरान उपजे विवाद ने राजनीतिक पारा चढ़ा दिया है। उपचुनाव में मतदान प्रक्रिया के बीच निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा ने मालपुरा एसडीएम अमित कुमार चौधरी को थप्पड़ मार दिया। इस घटना ने न सिर्फ राज्य की राजनीति को हिला दिया है, बल्कि इसकी गूंज जयपुर से लेकर दिल्ली तक सुनाई दे रही है।
इस घटना ने प्रशासनिक व्यवस्था और राजनीति के बीच की खाई को उजागर कर दिया है। राजनीतिक गलियारों में इस घटना की कड़ी आलोचना हो रही है। विपक्ष ने इसे प्रशासन के अपमान और कानून-व्यवस्था की विफलता करार दिया है, जबकि सत्तारूढ़ दल इसे एक स्वतंत्र प्रत्याशी की “हताशा” बता रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह घटना चुनावी हिंसा और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ हो रही बदसलूकी का प्रतीक है, जो लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकती है। इस मामले में सख्त कार्रवाई की मांग उठ रही है, जबकि घटनास्थल पर बढ़ते तनाव ने उपचुनाव के निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
*जब मंत्री ने IAS अफसर को चैंबर में बुलाकर की थी मारपीट*
राजस्थान के टोंक जिले में हाल ही में हुए थप्पड़ कांड ने 27 साल पुरानी घटना की याद ताजा कर दी है। उस समय राजस्थान के सिंचाई मंत्री देवी सिंह भाटी ने आइएएस अफसर पीके देब से मारपीट की थी, जब देब ने एक ठेका कंपनी को ब्लैकलिस्ट किया था। यह घटना 1997 में अशोक नगर थाने में दर्ज की गई थी और जांच सीआईडी सीबी को सौंपी गई थी, लेकिन मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
*नरेश मीणा का थप्पड़ कांड*
हाल ही में देवली-उनियारा उपचुनाव के दौरान कांग्रेस से बागी निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा ने एसडीएम अमित चौधरी को थप्पड़ मारा, जिससे सियासी घमासान मच गया। पुलिस ने नरेश मीणा को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन इसके बाद उनके समर्थकों ने हिंसा की और कई पत्रकारों के साथ मारपीट भी की। एसडीएम ने नरेश मीणा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई और उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
*मंत्री-अफसर विवाद से लेकर नरेश मीणा तक*
नरेश मीणा का यह कांड और 1997 की घटना एक ही सियासी परिप्रेक्ष्य में दिखाई दे रही हैं, जहां सत्ता में बैठे लोग अपने विवादों को सुलझाने के लिए न केवल हिंसा का सहारा लेते हैं, बल्कि इसके परिणाम भी लम्बे समय तक सामने आते हैं।